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नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
बिजलियाँ जिस में हों आसूदा वो ख़िर्मन तुम हो
बेच खाते हैं जो अस्लाफ़ के मदफ़न तुम हो
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ये वक़्त आने पे अपनी औलाद अपने अज्दाद बेच देगी
जो फ़ौज दुश्मन को अपना सालार गिरवी रख कर पलट रही है
तहज़ीब हाफ़ी
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ग़ज़ल
चाहत के बदले में हम तो बेच दें अपनी मर्ज़ी तक
कोई मिले तो दिल का गाहक कोई हमें अपनाए तो
अंदलीब शादानी
नज़्म
मुफ़्लिसी
मुफ़्लिस करे जो आन के महफ़िल के बीच हाल
सब जानें रोटियों का ये डाला है इस ने जाल
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
नज़राना
यूँ तो जो कुछ था मिरे पास मैं सब बेच आया
कहीं इनआम मिला, और कहीं क़ीमत भी नहीं
कैफ़ी आज़मी
ग़ज़ल
यही शैख़-ए-हरम है जो चुरा कर बेच खाता है
गलीम-ए-बूज़र ओ दलक़-ए-उवेस ओ चादर-ए-ज़हरा
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
अपनी ग़ैरत बेच डालें अपना मस्लक छोड़ दें
रहनुमाओं में भी कुछ लोगों का ये मंशा तो है