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नज़्म
वो सुब्ह कभी तो आएगी
जेलों के बिना जब दुनिया की सरकार चलाई जाएगी
वो सुब्ह हमीं से आएगी
साहिर लुधियानवी
नज़्म
किताबें
कई लफ़्ज़ों के मअ'नी गिर पड़े हैं
बिना पत्तों के सूखे तुंड लगते हैं वो सब अल्फ़ाज़
गुलज़ार
नज़्म
तुलू-ए-इस्लाम
जहाँबानी से है दुश्वार-तर कार-ए-जहाँ-बीनी
जिगर ख़ूँ हो तो चश्म-ए-दिल में होती है नज़र पैदा
अल्लामा इक़बाल
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नज़्म
मस्जिद-ए-क़ुर्तुबा
तेरी बिना पाएदार तेरे सुतूँ बे-शुमार
शाम के सहरा में हो जैसे हुजूम-ए-नुख़ील
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तस्वीर-ए-दर्द
जो है पर्दों में पिन्हाँ चश्म-ए-बीना देख लेती है
ज़माने की तबीअत का तक़ाज़ा देख लेती है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
चलो छोड़ो
कि अब तक मैं अँधेरों की धमक में साँस की ज़र्बों पे
चाहत की बिना रख कर सफ़र करता रहा हूँगा
मोहसिन नक़वी
ग़ज़ल
चाँद बिना हर दिन यूँ बीता जैसे युग बीते
मेरे बिना किस हाल में होगा कैसा होगा चाँद