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नज़्म
मुझे ले चल
इरम-ज़ार-ए-अबद है साया-ज़न जिन के ख़याबाँ पर
दवामिय्यत के जल्वे छा रहे हैं बाग़-ए-बुस्ताँ पर
अख़्तर शीरानी
नज़्म
अयादत
ज़ुल्फ़ों के पेच-ओ-ख़म में बहारें छुपी हुई
इक कारवान-ए-निकहत-ए-बुसताँ लिए हुए
असरार-उल-हक़ मजाज़
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मर्सिया
ऐ चमन पैरा-ए-मिल्लत तेरे शौक़-ए-दीद में
था नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ ये बुलबुल-ए-बुस्ताँ तिरा
ख़ुशी मोहम्मद नाज़िर
शेर
न तो सय्याद का खटका न ख़िज़ाँ का धड़का
हम को वो चैन क़फ़स में है कि बुस्ताँ में नहीं
मीर मेहदी मजरूह
ग़ज़ल
हमराह गुल-अंदामों के हो ख़ुर्रम-ओ-ख़ंदाँ
बाग़-ओ-चमन-ओ-गुलशन-ओ-बुसताँ में गुज़र थे
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
ऐ ज़मिस्ताँ की हवा तेज़ न चल
बर्ग-रीज़ाँ से कहो शहर से बाहर ठहरे
शहर के बाग़ से बुस्तान-ए-दबिस्ताँ से परे
असलम अंसारी
ग़ज़ल
है ये वक़्त-ए-सैर-ए-बुसताँ फलें हम भी साथ ऐ जाँ
कहा सुन के ये अरे म्याँ कोई तुम भी हो तमाशा
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
गो बहार अब है वले रोज़-ए-ख़िज़ाँ ऐ बुलबुल
यक-क़लम नर्गिस ओ गुल जावेंगे बुसताँ से निकल