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नज़्म
ख़िज़्र-ए-राह
ज़िंदगी की क़ूव्वत-ए-पिन्हाँ को कर दे आश्कार
ता ये चिंगारी फ़रोग़-ए-जावेदाँ पैदा करे
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हमेशा देर कर देता हूँ
हमेशा देर कर देता हूँ मैं हर काम करने में
ज़रूरी बात कहनी हो कोई वा'दा निभाना हो
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
हिण्डोला
कि जैसे हाथ अबद रख दे दोश-ए-तिफ़्ली पर
हर एक लम्हा के रख़नों से झाँकती सदियाँ
फ़िराक़ गोरखपुरी
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नज़्म
कौन सी उलझन को सुलझाते हैं हम?
शाम को जब अपनी ग़म-गाहों से दुज़्दाना निकल आते हैं हम?
या ज़वाल-ए-उम्र का देव-ए-सुबुक-पा रू-ब-रू
नून मीम राशिद
नज़्म
परछाइयाँ
सियाहियों का दबे-पाँव आसमाँ से नुज़ूल
लटों को खोल दे जिस तरह शाम की देवी
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
अँधेरी रात का मुसाफ़िर
फ़ज़ा में शोला-अफ़्शाँ देव-ए-इस्तिब्दाद का ख़ंजर
सियासत की सनानें अहल-ए-ज़र के ख़ूँ-चकाँ तेवर
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
सानेहा
देव-ए-बदी से मार्का-ए-सख़्त ही सही
ये तो नहीं कि ज़ोर-ए-जवानाँ चला गया