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ग़ज़ल
उस की सुख़न-तराज़ियाँ मेरे लिए भी ढाल थीं
उस की हँसी में छुप गया अपने ग़मों का हाल भी
परवीन शाकिर
नज़्म
तन्हाई
ढल चुकी रात बिखरने लगा तारों का ग़ुबार
लड़खड़ाने लगे ऐवानों में ख़्वाबीदा चराग़
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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विषय
धूल
धूल शायरी
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नज़्म
याद
यूँ गुमाँ होता है गरचे है अभी सुब्ह-ए-फ़िराक़
ढल गया हिज्र का दिन आ भी गई वस्ल की रात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
बज़्म-ए-ख़याल में तिरे हुस्न की शम्अ जल गई
दर्द का चाँद बुझ गया हिज्र की रात ढल गई
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मिरे हमदम मिरे दोस्त!
तेरी पेशानी से ढल जाएँ ये तज़लील के दाग़
तेरी बीमार जवानी को शिफ़ा हो जाए