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ग़ज़ल
बिन चाहे बिन बोले पल में टूट फूट कर फिर बन जाए
बालक सोच रहा है अब भी ऐसा कोई खिलौना होगा
मीराजी
नज़्म
एक लड़का
कभी जब सोचता हूँ अपने बारे में तो कहता हूँ
कि तू इक आबला है जिस को आख़िर फूट जाना है
अख़्तरुल ईमान
ग़ज़ल
टूट गए सय्याल नगीने फूट बहे रुख़्सारों पर
देखो मेरा साथ न देना बात है ये रुस्वाई की
क़तील शिफ़ाई
नज़्म
कोई आशिक़ किसी महबूबा से!
गर कहीं तुम से हम-आग़ोश हुई फिर से नज़र
फूट निकलेगी वहाँ और कोई राहगुज़र
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
डूबने वाले की मय्यत पर लाखों रोने वाले हैं
फूट फूट कर जो रोते हैं वही डुबोने वाले हैं