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नज़्म
मिट्टी का दिया
गर निकल कर इक ज़रा महलों से बाहर देखिए
है अँधेरा घुप दर-ओ-दीवार पर छाया हुआ
अल्ताफ़ हुसैन हाली
ग़ज़ल
आश्ना की सदा घुप-अँधेरे में बन जाती है रौशनी
इस शब-ए-तार में अपनी आवाज़ का रखना रौशन दिया