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नज़्म
ए'तिराफ़
ख़्वाब-गाहों में जगाई है जवानी मैं ने
हुस्न ने जब भी इनायत की नज़र डाली है
असरार-उल-हक़ मजाज़
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नज़्म
एक नज़्म बच्चों की तरफ़ से
ये ता'लीम गर मिल भी जाए तो क्या है
मुसीबत है कैसी सहर की जगाई
असना बद्र
ग़ज़ल
बरसों में इक जोगी लौटा जंगल में फिर जोत जगाई
कहने लगा ऐ भोले शंकर शहरों में महँगाई बहुत है
साहिर होशियारपुरी
ग़ज़ल
ये किस ने आज जगाई है अहद-ए-रफ़्ता की याद
ये कौन दिल के क़रीं आज नौहा-ख़्वाँ सा है