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ग़ज़ल
वो जो छुप जाते थे काबों में सनम-ख़ानों में
उन को ला ला के बिठाया गया दीवानों में
मख़दूम मुहिउद्दीन
ग़ज़ल
थोड़ा सा भी जिन लोगों को इरफ़ान-ए-मज़ाहिब था वो बच कर
का'बों से शिवालों से कलीसाओं से आगे निकल आए
क़तील शिफ़ाई
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नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
हो निको नाम जो क़ब्रों की तिजारत कर के
क्या न बेचोगे जो मिल जाएँ सनम पत्थर के
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
हज़ारों शेर मेरे सो गए काग़ज़ की क़ब्रों में
अजब माँ हूँ कोई बच्चा मिरा ज़िंदा नहीं रहता
बशीर बद्र
नज़्म
एक आरज़ू
कानों पे हो न मेरे दैर ओ हरम का एहसाँ
रौज़न ही झोंपड़ी का मुझ को सहर-नुमा हो
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तराना-ए-मिल्ली
दुनिया के बुत-कदों में पहला वो घर ख़ुदा का
हम इस के पासबाँ हैं वो पासबाँ हमारा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
परछाइयाँ
उठो कि आज हर इक जंग-जू से ये कह दें
कि हम को काम की ख़ातिर कलों की हाजत है