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ग़ज़ल
नूर का तन है नूर के कपड़े उस पर क्या ज़ेवर की चमक है
छल्ले कंगन इक्के जोशन माशा-अल्लाह माशा-अल्लाह
अमीर मीनाई
नज़्म
वही नर्म लहजा
उस की आवाज़ का लम्स पा के
हवाओं के हाथों में अन-देखे कंगन खनकने लगे हों
परवीन शाकिर
ग़ज़ल
ये बातों बातों में मुझ को बता गए 'तनवीर'
कल उस के हाथ का कंगन घुमा रहा था मैं
मोहसिन आफ़ताब केलापुरी
नज़्म
क्या गुल-बदनी है
गर्दन में चंदन-हार है हाथों में है कंगन
उमडे हुए इश्वे हैं गरजता हुआ जौबन