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नज़्म
हसन कूज़ा-गर (1)
वो हम से ख़ुद अपने अमल से
ख़ुदा-वंद बन कर ख़ुदाओं के मानिंद है रू-ए-गरदाँ!
नून मीम राशिद
नज़्म
लेनिन
मशरिक़ के ख़ुदावंद सफ़ेदान-ए-रंगी
मग़रिब के ख़ुदावंद दरख़्शंदा फ़िलिज़्ज़ात
अल्लामा इक़बाल
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ग़ज़ल
नज़्र माँगे जो गुलिस्ताँ से ख़ुदा-वन्द-ए-जहाँ
साग़र-ए-मय में लिए ख़ून-ए-बहाराँ चलिए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
इज़हार और रसाई
आब ओ रंग ओ ख़त ओ मेहराब का पैवंद कभी
और बनता है मआ'नी का ख़ुदावंद कभी
नून मीम राशिद
अप्रचलित ग़ज़लें
तुम हो बुत फिर तुम्हें पिंदार-ए-ख़ुदाई क्यों है
तुम ख़ुदावंद ही कहलाओ ख़ुदा और सही
मिर्ज़ा ग़ालिब
नज़्म
जश्न-ए-'ईद
बड़ा ग़ज़ब है ख़ुदावंद-ए-कौसर-ओ-तसनीम
कि रोज़-ए-'ईद भी तबक़ों का इम्तियाज़ रहा
शकेब जलाली
नज़्म
इस्राफ़ील की मौत
मर्ग-ए-इस्राफ़ील पर आँसू बहाओ
वो ख़ुदाओं का मुक़र्रब वो ख़ुदावंद-ए-कलाम
नून मीम राशिद
नज़्म
दरीचा
हर एक वस्ल-ए-ख़ुदा-वंद की उमंग लिए
किसी पे करते हैं अब्र-ए-बहार को क़ुर्बां