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नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
ख़ाक में लुथड़े हुए ख़ून में नहलाए हुए
जिस्म निकले हुए अमराज़ के तन्नूरों से
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
डरे क्यूँ मेरा क़ातिल क्या रहेगा उस की गर्दन पर
वो ख़ूँ जो चश्म-ए-तर से उम्र भर यूँ दम-ब-दम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
रूप-सरूप की जोत जगाना उस नगरी में जोखम है
चारों खूँट बगूले बन कर घोर अंधेरे फिरते हैं
सय्यद आबिद अली आबिद
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विषय
ख़ून
ख़ून शायरी
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ग़ज़ल
चौथे खूँट को जा तो रहे हो लेकिन ये वो रस्ता है
तुम ने अगर मुड़ कर देखा तो पत्थर के हो जाओगे
शाहिद इश्क़ी
ग़ज़ल
दिल के गिर्द हिसार खिंचा तो उस का मिलना मुहाल हुआ
चारों खूँट आवारा फिरे जब पाँव भी अपने टूट गए
शफ़क़त तनवीर मिर्ज़ा
नज़्म
शिकवा
जू-ए-ख़ूँ मी चकद अज़ हसरत-ए-दैरीना-ए-मा
मी तपद नाला ब-निश्तर कद-ए-सीना-ए-मा