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ग़ज़ल
किस को पार उतारा तुम ने किस को पार उतारोगे
मल्लाहो तुम परदेसी को बीच भँवर में मारोगे
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तिरा ख़याल भी
दिल को ख़ुशी के साथ साथ होता रहा मलाल भी
परवीन शाकिर
नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
इस क़दर शोख़ कि अल्लाह से भी बरहम है
था जो मस्जूद-ए-मलाइक ये वही आदम है
अल्लामा इक़बाल
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ग़ज़ल
कहीं चाक-ए-जाँ का रफ़ू नहीं किसी आस्तीं पे लहू नहीं
कि शहीद-ए-राह-ए-मलाल का नहीं ख़ूँ-बहा उसे भूल जा
अमजद इस्लाम अमजद
ग़ज़ल
गया तो इस तरह गया कि मुद्दतों नहीं मिला
मिला जो फिर तो यूँ कि वो मलाल में मिला मुझे
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
दरख़्त-ए-ज़र्द
तुम्हारी सुब्ह जाने किन ख़यालों से नहाती हो
तुम्हारी शाम जाने किन मलालों से निभाती हो
जौन एलिया
ग़ज़ल
न उदास हो न मलाल कर किसी बात का न ख़याल कर
कई साल बा'द मिले हैं हम तिरे नाम आज की शाम है