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ग़ज़ल
उफ़ ये सन्नाटा कि आहट तक न हो जिस में मुख़िल
ज़िंदगी में इस क़दर हम ने सुकूँ पाया न था
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
न हो मुख़िल मिरे अंदर की एक दुनिया में
बड़ी ख़ुशी से बर-ओ-बहर पर हुकूमत कर
राजेन्द्र मनचंदा बानी
नज़्म
सय्यद से आज हज़रत-ए-वाइ'ज़ ने ये कहा
उस ने दिया जवाब कि मज़हब हो या रिवाज
राहत में जो मुख़िल हो वो काँटा है राह का
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
मेरी शाएरी
मिरी शाएरी बे-क़रारों की दुनिया
वो ज़र्रा कि राह-ए-सुकूँ में मुख़िल है
हफ़ीज़ जालंधरी
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