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नज़्म
तुलू-ए-इस्लाम
सरिश्क-ए-चश्म-ए-मुस्लिम में है नैसाँ का असर पैदा
ख़लीलुल्लाह के दरिया में होंगे फिर गुहर पैदा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
फ़ुनून-ए-लतीफ़ा
जिस से दिल-ए-दरिया मुतलातिम नहीं होता
ऐ क़तरा-ए-नैसाँ वो सदफ़ क्या वो गुहर कया!
अल्लामा इक़बाल
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naisaa.n
नैसाँنَیْساں
फर्वरदीन (बैसाख) की बारिश, (जिसके लिए प्रसिद्ध है कि इस पानी की हर बूंद सीप में मोती बन जाती है), फ़र्वरदीन, बैसाख का मास, होली और नवरोज़ के आस-पास होने वाली बारिश
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ग़ज़ल
अब्र-ए-नैसाँ की न बरकत है न फ़ैज़ान-ए-बहार
क़तरे गुम हो गए ता'मीर-ए-गुहर से पहले
अली सरदार जाफ़री
ग़ज़ल
मिरी आरज़ुओं के सीप का किसी आब-ए-नैसाँ से मेल कर
मुझे आश्ना-ए-विसाल कर मिरी बेकली को क़रार दे
ख़ालिद नदीम शानी
मर्सिया
फ़ैज़ से तेरे रही वाबस्ता हासिल की उम्मीद
तिश्ना-लब कहती न जाए अब्र-ए-नैसाँ छोड़ कर
ख़ुशी मोहम्मद नाज़िर
नज़्म
बादा-ए-इश्क़ से सरशार गुरु-नानक थे
अब्र-ए-नैसाँ का ख़वास उन की नसीहत में था
लब-ए-शीरीं से गुहर-बार गुरु-नानक थे
श्याम सुंदर लाल बर्क़
ग़ज़ल
हर चश्म-ए-सदफ़ क़तरा-ए-नैसाँ के लिए खोल
इन झुलसे हुए जिस्मों को रानाई अता कर
सय्यद मोहम्मद अहमद नक़वी
ग़ज़ल
ये देखा है नहीं बे-फ़ैज़ आमद अब्र-ए-नैसाँ की
कोई अंजाम होता है बशर जो कुछ भी करता है







