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nihaa.n rahnaa
निहाँ रहनाنِہاں رَہنا
छिपा हुआ रहना, गुप्त रहना
nihaa.n karnaa
निहाँ करनाنِہاں کَرنا
नज़रों से ओझल जगह, पोशीदा या खु़फ़ीया मुक़ाम , जैसे : खु़फ़ीया कमरा या तहा ख़ाना वग़ैरा । हमद बेहद वास्ते इस ख़ालिक़ के सज़ावार है जिस ने नौ इंसान को निहां खाना-ए- अदम से अर्सा-ए-गाह वजूद ।।।।। बख्शा । (१८१०, अख़वान उलसफा, १) । इस बाग़ में एकता ख़ाना मिसल निहां खाना-ए- दिल तय्यार कर के शहज़ादे को लाल के मानिंद ओस मंज़िल संगीन में पोशीदा क्या । (१८४६, क़िस्सा-ए- अगर गुल, ७) । जब हम सौ रहे होते हैं तो ये मख़फ़ी सूरतों अपने निहां ख़ाना से निकल आती हैं । (१९१०, मार्का-ए- मज़हब-ओ-साईंस, १९१) । जो सैर-ओ-सयाहत के शौक़ में इस के गले के अंदरूनी निहां ख़ानों में भटकी थीं । (१९६८, माँ जी, १७५) । उर्दू शायरी को अदब के निहां ख़ानों से निकाल कर हस्ती दामन गुल पर जलवागर किया । (१९९२, सहीफ़ा, लाहौर, जुलाई, सितंबर, ७८) । ] निहां + ख़ाना (रुक) [ । ।।। खाना-ए-ख़्याल किस अज़ा(।।।फ़ितन, किसॱएॱ, फ़त्त ख) अमज़ । रुक : निहां खाना-ए-दिमाग़ । ऐसा मालूम होने लगता है कि नावल ने मुसन्निफ़ के निहां खाना-ए- ख़्याल से जन्म नहीं लिया । (१९९०, क़ौमी ज़बान, कराची, जनवरी, ७२) । ] निहां + खाना-ए- + ख़्याल(रुक) [ । ।।। खाना-ए-दिल किस अज़ा(।।।फ़ितन, किसॱएॱ, द) अमज़ । दिल का अंदरूनी हिस्सा, दिल की गहराई , मुराद : जज़बात उदली । और यूं दर्द-ए-हुस्न-ओ-इशक़ ।।।।। फ़िक्र-ओ-एहसास की रूह बिन जाते हैं जो निहां खाना-ए-दिल को परीख़ाना बना देते हैं । (१९८७, शाख़ हरी और पीले फूल, २९८) । निहां खाना-ए-दिल में महफ़ूज़ यादों पर से गर्द झाड़कर उन्हें सिलसिला वार सजाने लगा । (१९९८, अफ़्क़ार, कराची, दिसंबर, ६०) । ] निहां +खाना-ए-+ दिल (रुक) [ । ।।। खाना-ए-दिमाग किस अज़ा(।।।फ़ितन,किसॱएॱ, द) अमज़ । दिमाग़ का अंदरूनी हिस्सा, दिमाग़ की गहराई , मुराद : फ़िक्र, ख़्याल, सोच । मेरे निहां खाना-ए-दिमाग़ पर मिर्ज़ा साहिब अक्सर दस्तक देते रहे थे । (२००३, बेदार दिल लोग, १२) । ] निहां + खाना-ए- + दिमाग़ (रुक) [ । ।।। खाना-ए-ज़ात किस अज़ा(।।। फ़ितन, किसॱएॱ) अमज़ । रुक : निहां खाना-ए- दिल । है ये फ़िर्दोस नज़र अहल-ए-हुनर की तामीर फ़ाश है चशम तमाशा पे निहां खाना-ए-ज़ात! (१९३६, ज़रब कलीम, ११५) । ।।। रखना फ मर , मुहावरा । मख़फ़ी रखना, छुपा कर रखना, पोशीदा रखना । दानिशमंदी का तक़ाज़ा ये है कि जज़बात को ख़ाह वो कैसे ही मासूम क्यों ना हूँ निहां भी रखा जाये । (१९९१, ख़ाका नुमा, १७०) । ।।। रहना फ मर , मुहावरा । छिपा हुआ रहना, पोशीदा रहना । तुम तो अपने ही ख़्यालों में निहां रहते हो इक नज़र मुझ को ज़रा ग़ौर से देखो तो सही (१९६२, तिश्नगी का सफ़र, २०) । ।।। साज़ी एम्स । राज़-ओ-नयाज़ । पोशीदा या मख़फ़ी रखना , राज़दारी बरतना, छुपाना
nihaa.n honaa
निहाँ होनाنِہاں ہونا
निहां करना (रुक) का लाज़िम , छपा होना, मख़फ़ी होना, पोशीदा होना
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ग़ज़ल
थीं बनात-उन-नाश-ए-गर्दुं दिन को पर्दे में निहाँ
शब को उन के जी में क्या आई कि उर्यां हो गईं
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
किसी और ग़म में इतनी ख़लिश-ए-निहाँ नहीं है
ग़म-ए-दिल मिरे रफ़ीक़ो ग़म-ए-राएगाँ नहीं है
मुस्तफ़ा ज़ैदी
ग़ज़ल
ये कह सकते हो हम दिल में नहीं हैं पर ये बतलाओ
कि जब दिल में तुम्हीं तुम हो तो आँखों से निहाँ क्यूँ हो
मिर्ज़ा ग़ालिब
नज़्म
ला-इलाहा-इल्लल्लाह
ख़ुदी का सिर्र-ए-निहाँ ला-इलाहा-इल्लल्लाह
ख़ुदी है तेग़ फ़साँ ला-इलाहा-इल्लल्लाह
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दुआ
इश्क़ का सिर्र-ए-निहाँ जान-ए-तपाँ है जिस से
आज इक़रार करें और तपिश मिट जाए