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नज़्म
हमारे उस्ताद
कितनी मेहनत से पढ़ाते हैं हमारे उस्ताद
हम को हर इल्म सिखाते हैं हमारे उस्ताद
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
नज़्म
मुफ़्लिसी
वो जो ग़रीब-ग़ुरबा के लड़के पढ़ाते हैं
उन की तो उम्र भर नहीं जाती है मुफ़्लिसी
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
मुझे आज इतनी नफ़रत से न देखती ये दुनिया
जो पढ़ाई से ज़रा भी मिरे दिल को प्यार होता
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
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नज़्म
गुड्डे मियाँ की शादी
क़ाज़ी जी निकाह पढ़ाते हैं
मुसम्मात-ए-गुल दुख़्तर-ए-शैख़ 'ख़ार'
अख़गर मुशताक़ रहीमाबादी
हास्य
ट्यूशनें घर में पढ़ाते हैं यही काफ़ी नहीं
मदरसे में मास्टर जी ख़ाक पढ़ाएँगे क्या
सय्यद फ़हीमुद्दीन
हास्य
प्रोफ़ेसर ये उर्दू के जो उर्दू से कमाते हैं
इसी पैसे से बच्चों को ये अंग्रेज़ी पढ़ाते हैं
अहमद अल्वी
नज़्म
मसर्रत होती है
जिस वक़्त पढ़ाते हैं टीचर दिल कितना परेशाँ होता है
लेकिन जब खेल खिलाते हैं तो कितनी मसर्रत होती है
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
ग़ज़ल
नबील अहमद नबील
नज़्म
बड़े भय्या
मुझे पढ़ने को यूँ कहते हैं अक्सर
कि जैसे ख़ुद वो एम-ए तक पढ़े हैं