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नज़्म
ज़िंदगी का वक़्फ़ा
एक सादा सा वरक़ नामा-ए-आमाल है सब
कुछ नहीं लिक्खा ब-जुज़ इस के पिसे जाओ यूँही
अख़्तरुल ईमान
ग़ज़ल
पिसे दिल हज़ारों तड़प गए जो सिसक रहे थे वो मर गए
उठे फ़ित्ने हश्र बपा हुआ ये अजीब तर्ज़-ए-ख़िराम है
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
होंठों में दाब कर जो गिलौरी दी यार ने
क्या दाँत पीसे ग़ैरों ने क्या क्या चबाए होंठ
असद अली ख़ान क़लक़
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शेर
होंठों में दाब कर जो गिलौरी दी यार ने
क्या दाँत पीसे ग़ैरों ने क्या क्या चबाए होंठ
असद अली ख़ान क़लक़
ग़ज़ल
किस तरह से न पिसे दिल रुख़-ए-गंदुम-गूँ पर
आक़िबत हज़रत-ए-आदम ही की औलाद हैं हम