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हास्य शायरी
हम लोग बढ़ रहे हैं तरक़्क़ी की राह में
सर में दिमाग़ रखते हैं दुनिया निगाह में
साग़र ख़य्यामी
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ग़ज़ल
तुझ को जब तन्हा कभी पाना तो अज़-राह-ए-लिहाज़
हाल-ए-दिल बातों ही बातों में जताना याद है
हसरत मोहानी
ग़ज़ल
उस के ही बाज़ुओं में और उस को ही सोचते रहे
जिस्म की ख़्वाहिशों पे थे रूह के और जाल भी