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ग़ज़ल
ज़रा देखे कोई शान-ए-फ़क़ीरी ऐ 'सईद' अपनी
कि ताज-ओ-तख़्त को हम ने सदा ठोकर पे रक्खा है
सईद रहमानी
ग़ज़ल
हमारी मंज़िलें इक हैं जुदा हैं रास्ते बे-शक
मगर नक़्श-ए-क़दम हर रहगुज़र पर सात बाक़ी है
सईद अहमद सईद कड़वी
ग़ज़ल
सईद अहमद सईद कड़वी
ग़ज़ल
उड़ाओ तुम भी बुज़ुर्गों का ऐ 'सईद' मज़ाक़
ये फ़ैसला ही अगर शहर के अवाम का है