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शेर
अज़ीज़ान-ए-वतन को ग़ुंचा ओ बर्ग ओ समर जाना
ख़ुदा को बाग़बाँ और क़ौम को हम ने शजर जाना
चकबस्त बृज नारायण
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ग़ज़ल
तिरी उमीदों का साथ देगी इनायत-ए-बर्ग-ओ-बार कब तक
बहार है मेहरबान तुझ पर मगर रहेगी बहार कब तक
गुलज़ार बुख़ारी
नज़्म
वतन-आशोब
सब्ज़ा ओ बर्ग ओ लाला ओ सर्व-ओ-समन को क्या हुआ
सारा चमन उदास है हाए चमन को क्या हुआ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
अमर जोत
वरक़ तारीख़ ने तेज़ी से उल्टे
तग़य्युर ले के साज़-ओ-बर्ग-ए-ता'मीर-ए-जहाँ आया