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विषय
समाज
समाज शायरी
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ग़ज़ल
एक समय तिरा फूल सा नाज़ुक हाथ था मेरे शानों पर
एक ये वक़्त कि मैं तन्हा और दुख के काँटों का जंगल
नासिर काज़मी
ग़ज़ल
यही मिलने का समय भी है बिछड़ने का भी
मुझ को लगता है बहुत अपने से डर शाम के बाद
कृष्ण बिहारी नूर
ग़ज़ल
दिल जवाँ सपने जवाँ मौसम जवाँ शब भी जवाँ
तुझ को मुझ से इस समय सूने में मिलना चाहिए