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ग़ज़ल
अर्श मलसियानी
ग़ज़ल
ज़ख़्म को सीते हैं सब पर सोज़न-ए-अल्मास से
चाक सीने के सिलाना कोई हम से सीख जाए
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
सीते हैं सोज़न से चाक-ए-सीना क्या ऐ चारासाज़
ख़ार-ए-ग़म सीने में अपने मिस्ल-ए-सोज़न आप हैं
बहादुर शाह ज़फ़र
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ग़ज़ल
इरफ़ान सत्तार
नज़्म
काले सफ़ेद परों वाला परिंदा और मेरी एक शाम
जिन की उम्मीदों के दामन में पैवंद लगे हैं
जामा एक तरफ़ सीते हैं दूसरी जानिब फट जाता है
अख़्तरुल ईमान
हास्य शायरी
हज़ारों साइटें ऐसी कि हर साइट पे दम निकले
न पूछो किस तरह फिर साइबर कैफ़े से हम निकले
शाहिद जमील
शेर
इरफ़ान सत्तार
ग़ज़ल
मुँह हर दहान-ए-ज़ख़्म का सीते हैं इस लिए
मतलब है हश्र में भी न हो दाद-ख़्वाह चोट