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नज़्म
सर-ए-वादी-ए-सीना
फिर बर्क़ फ़रोज़ाँ है सर-ए-वादी-ए-सीना
फिर रंग पे है शोला-ए-रुख़्सार-ए-हक़ीक़त
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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ग़ज़ल
'जमील' इक ग़म-फ़रोश-ए-वादी-ए-ग़ुर्बत सही लेकिन
तुम्हारे शहर में कोई ठिकाना ढूँढ ही लेगा
अताउर्रहमान जमील
ग़ज़ल
बहुत दिलचस्प है 'सीमाब' शाम-ए-वादी-ए-ग़ुर्बत
वतन की सुब्ह में कुछ और थीं रंगीनियाँ फिर भी
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
बहुत ख़ुश-ज़र्फ़-ओ-ख़ुश-बीं है फ़ज़ा-ए-वादी-ए-ग़ुर्बत
ब-ज़ाहिर हमदम-ओ-दर्द-आश्ना मा'लूम होती है
राज़ चाँदपुरी
शेर
सँभल कर पाँव रखना वादी-ए-इश्क़-ओ-मोहब्बत में
यहाँ जो सैर को आता है बच कर कम निकलता है
साहिर सियालकोटी
ग़ज़ल
घर अपना वादी-ए-बर्क़-ओ-शरर में रक्खा जाए
तअ'ल्लुक़ात का सौदा न सर में रक्खा जाए