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नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
अन-गिनत सदियों के तारीक बहीमाना तिलिस्म
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
दीवाने की जन्नत
अपने एहसास की तहरीक पे शरमाती हुई
अपने क़दमों की भी आवाज़ से कतराती हुई
वसीम बरेलवी
नज़्म
उर्दू का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले
ऐ ख़ाक-ए-अवध फ़ाएदा क्या शरह-ए-सितम से
तहरीक ये मिस्र-ओ-अ'रब-ओ-रोम से निकले
रईस अमरोहवी
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नज़्म
मुझे जाना है इक दिन
अभी हैं शहर की तारीक गलियाँ मुंतज़िर मेरी
अभी है इक हसीं तहरीक-ए-तूफ़ाँ मुंतज़िर मेरी
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
झूमती है शाख़-ए-गुल खिलते हैं ग़ुंचे दम-ब-दम
बा-असर गुलशन में तहरीक-ए-सबा हो या न हो
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
माज़ूरी
मैं ने देखा है शिकस्त-ए-साज़-ए-उल्फ़त का समाँ
अब किसी तहरीक पर बरबत उठा सकता नहीं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
आज की दुनिया
ये दामन-ए-अजल है कि तहरीक-ए-ग़ैब है
क्या शय हवा-ए-दहर को सनका रही है आज
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
आज ख़ूँ हो के टपक पड़ने के नज़दीक है दिल
नोक-ए-नश्तर हो तो हाँ क़ाबिल-ए-तहरीक है दिल