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ग़ज़ल
तमाम महफ़िल के रू-ब-रू गो उठाईं नज़रें मिलाईं आँखें
समझ सका एक भी न लेकिन सवाल मेरा जवाब तेरा
जोश मलीहाबादी
नज़्म
गौतम-बुद्ध
इज़्तिराबाना बसर की ज़िंदगानी मुद्दतों
कुल्फ़तें रह के उठाईं मौसमों की शिद्दतें
मयकश अकबराबादी
नज़्म
माँ का हक़
क्यों न फिर जी जान से उस ज़ात की ख़िदमत करूँ
मेरी पैदाइश पे तकलीफ़ें उठाईं बे-शुमार
मुर्तजा साहिल तस्लीमी
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नज़्म
कहानी गुल-ज़मीना की
क्या लिख रही हो?
गुल-ज़मीना ने शर्बत भरी आँखें ऊपर उठाईं और कहने लगी...
ज़ेहरा निगाह
ग़ज़ल
जब तुम्हारे इश्क़ में मैं ने जलाईं उँगलियाँ
मेरे पागल-पन पे तुम ने भी उठाईं उँगलियाँ