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ग़ज़ल
अबस इन शहरियों में वक़्त अपना हम किए ज़ाए
किसी मजनूँ की सोहबत बैठ दीवाने हुए होते
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
उस के लिए भी ग़म-ज़ा-ए-नाज़-ओ-अदा का वक़्त है
अपने लिए भी मौसम-ए-हिज्र-ओ-विसाल है नया
अतहर नफ़ीस
शेर
अबस इन शहरियों में वक़्त अपना हम किए ज़ाए
किसी मजनूँ की सोहबत बैठ दीवाने हुए होते
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
जब उस की बर्क़-ए-हुस्न से पर्दा हुआ है वा
ज़ाए हुए हैं तालिब-ए-दीदार हर तरफ़