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ग़ज़ल
ज़ौक़-ए-शीरीनी-ए-गुफ़्तार फ़ुज़ूँ और हुआ
ज़हर जितने थे वो सब अहल-ए-ज़बाँ तक पहुँचे
रविश सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
उम्र गुज़री मिरी शीरीनी-ए-गुफ़्तार के साथ
लब मिलाए थे कभी मैं ने लब-ए-यार के साथ
सैफ़ुद्दीन सैफ़
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ग़ज़ल
'नाज़िर' मिरी शीरीनी-ए-गुफ़्तार में कुछ लोग
हालात की तल्ख़ी को डुबोने नहीं देते
मंज़ूर-उल-हक़ नाज़िर
ग़ज़ल
गर्मी-ए-पहलू यही तश्कीक ओ ला-इल्मी की आँच
ज़ौक़-ए-गुमशुदगी से हम हैं बा-ख़बर या बा-हुनर
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
नज़्म
सुब्ह-ए-शब-ए-इंतिज़ार
कुछ इस तरह से बढ़ा दिल में ज़ौक़-ए-आज़ादी
कि रफ़्ता रफ़्ता तमन्ना जवान होती गई
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
जो तिरी महफ़िल से ज़ौक़-ए-ख़ाम ले कर आए हैं
अपने सर वो ख़ुद ही इक इल्ज़ाम ले कर आए हैं
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
सुलूक-ए-इश्क़ में बे-फ़ैज़ हैं वो लब जिन से
हुसूल-ए-लज़्ज़त-ए-शीरीनी-ए-लुआब न हो