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ग़ज़ल
सिर्फ़ ज़ाहिर हो गया सरमाया-ए-ज़ेब-ओ-सफ़ा
क्या तअ'ज्जुब है जो बातिन बा-सफ़ा मिलता नहीं
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
ख़ाक-ए-हिंद
तेरे जबीं से नूर-ए-हुस्न-ए-अज़ल अयाँ है
अल्लाह-रे ज़ेब-ओ-ज़ीनत क्या औज-ए-इज़्ज़-ओ-शाँ है
चकबस्त बृज नारायण
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नज़्म
मज़दूर औरतें
तू और ज़ेब-ओ-ज़ीनत-ए-अलवान-ए-ज़र-निगार
क्या तेरे क़स्र-ए-नाज़ की हिलती नहीं ज़मीं
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
तराना-ए-क़ौमी
ज़ेब-ओ-ज़ीनत में तू ऐ जान-ए-जहाँ मशहूर है
ख़ैर ओ बरकत से तू ऐ हिन्दोस्ताँ मामूर है
सफ़ीर काकोरवी
ग़ज़ल
हसीनान-ए-चमन पर ख़ात्मा है जामा-ज़ेबी का
फटा पड़ता है जोबन जो ये पैराहन बनाते हैं
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
उस हरम की ज़ेब-ओ-ज़ीनत को ख़ुदा रक्खे मगर
मुजरिमान-ए-अह्द-ओ-पैमान-ए-कलीसा हम भी हैं
एहसान दानिश
ग़ज़ल
गर बादिला सर पर है तो मख़मल है तह-ए-पा
अल-क़िस्सा अजब मंज़र-ए-पुर-जे़ब-ओ-ज़िया है
मुहीउद्दीन फ़ौक़
ग़ज़ल
परी-रुख़ों को ग़रज़ क्या थी ज़ेब-ओ-ज़ीनत से
न होती गर उन्हें अपने नज़ारा-गर की तलब