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ग़ज़ल
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
गुस्ताख़ी-ए-विसाल है मश्शाता-ए-नियाज़
या'नी दुआ ब-जुज़ ख़म-ए-ज़ुल्फ़-ए-दुता न माँग
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ये क्यूँ ख़मीदा है सिफ़त-ए-साहब-ए-रुकू
क्या पढ़ रही है दोश पे ज़ुल्फ़-ए-दोता नमाज़
अहमद हुसैन माइल
ग़ज़ल
क्या कहूँ दिल माइल-ए-ज़ुल्फ़-ए-दोता क्यूँकर हुआ
ये भला चंगा गिरफ़्तार-ए-बला क्यूँकर हुआ
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
सब से पहले तो सियाही मिरी क़िस्मत को मिली
जो बची थी वो तिरी ज़ुल्फ़-ए-दोता ने ले ली
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
शोरीदगी-ए-सर के लिए संग-ए-दर की क़ैद
ज़ंजीर-ए-ग़म के वास्ते ज़ुल्फ़-ए-दोता की शर्त
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
ग़ज़ल
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
नूह नारवी
ग़ज़ल
उक़्दा जो दिल में है मिरे होने का वा नहीं
जब तक कि आप खोलते ज़ुल्फ़-ए-दोता नहीं
मीर तस्कीन देहलवी
ग़ज़ल
ख़ुबाँ के बाग़ में रौनक़ हुए तो किस तरह याराँ
न दोना है न मरवा है न सौसन है न लाला है