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ग़ज़ल
दुनिया से अहल-ए-इश्क़ को कोई नहीं है वास्ता
सब से हूँ मैं अलग-थलग सब से मुझे जुदा समझ
सिराजुद्दीन ज़फ़र
ग़ज़ल
मेरे मिज़ाज का है मिरा अक्स ख़द्द-ओ-ख़ाल
सब से अलग-थलग हूँ मैं सब से जुदा है ख़ौफ़
मोहम्मद शाहिद फ़ीरोज़
ग़ज़ल
किसी बे-ग़ुरूब निगाह से किसी ला-ज़वाल शुआ' में
सभी ज़ावियों से अलग-थलग मुझे हल करो मिरा हल नहीं