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ग़ज़ल
रिया-कारी से बचिए ये बहुत ज़हरीली नागिन है
ये नागिन ज़िंदगी भर की 'इबादत छीन लेती है
आलम निज़ामी
ग़ज़ल
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
देखो कि फँस न जाएँ फ़रिश्ते भी जाल में
क्यूँ पढ़ रहे हो खोल के ज़ुल्फ़-ए-रसा नमाज़
अहमद हुसैन माइल
ग़ज़ल
गो भलाई करके हम-जिंसों से ख़ुश होता है जी
तह-नशीं उस में मगर दुर्द-ए-रिया पाते हैं हम
अल्ताफ़ हुसैन हाली
ग़ज़ल
मोहतसिब और हम हैं दोनों मुत्तफ़िक़ इस बाब में
बरमला जो मय-कशी हो बे-रिया हो जाएगी