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ग़ज़ल
जब भी देखो नहाना धोना उन का रहता है चालू
संडे मंडे जुमा हफ़्ता ये मालूम न वो मालूम
पागल आदिलाबादी
ग़ज़ल
कई ख़ज़ाने क़िस्से वाले इक बच्चे के पास मिले
दादा दादी उस के पास नाना नानी उस के पास
प्रताप सोमवंशी
ग़ज़ल
दाम-ए-हर-मौज में है हल्क़ा-ए-सद-काम-ए-नहंग
देखें क्या गुज़रे है क़तरे पे गुहर होते तक
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
एक ये दिन जब अपनों ने भी हम से नाता तोड़ लिया
एक वो दिन जब पेड़ की शाख़ें बोझ हमारा सहती थीं