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ग़ज़ल
शबीना अदीब
ग़ज़ल
हर्फ़-ए-दुश्नाम से यूँ उस ने नवाज़ा हम को
ये मलामत ही मोहब्बत का सिला हो जैसे
अकबर अली खान अर्शी जादह
ग़ज़ल
अलीना इतरत
ग़ज़ल
ख़ुदा जाने ख़ुदा ने क्यूँ मुझे इतना नवाज़ा है
मैं जब भी लड़खड़ाता हूँ सहारे घेर लेते हैं
प्रबुद्ध सौरभ
ग़ज़ल
तू ने हर ग़म से नवाज़ा है तिरा ख़ास करम
मुझ को तो ये भी नहीं याद कि क्या माँगा था
महेंद्र प्रताप चाँद
ग़ज़ल
मैं एक सादा लफ़्ज़ था मंसूब उस से क्या हुआ
उस ने नवाज़ा इस तरह मैं हो गया हूँ क़ाफ़िया
राघवेंद्र द्विवेदी
ग़ज़ल
तुम्हें नवाज़ा है सब मेरे मैके वालों ने
तुम्हारे घर में ये सब ताम-झाम किस का था