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ग़ज़ल
डरे क्यूँ मेरा क़ातिल क्या रहेगा उस की गर्दन पर
वो ख़ूँ जो चश्म-ए-तर से उम्र भर यूँ दम-ब-दम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
जो अब यूँ मेरे गिर्दा-गिर्द हैं कुछ रोज़ पहले तक
उन्ही लोगों के हक़ में किस क़दर सब्र-आज़मा था मैं
अनवर शऊर
ग़ज़ल
पासबाँ ने ग़म दिया और हम-दमों ने जान ली
आज क़ाइल हो गए हम गर्दिश-ए-तक़दीर के
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
ग़ज़ल
ख़्वाहिशें दुनिया की बार-ए-दोश-ओ-गर्दन हो गईं
रफ़्ता रफ़्ता मंज़िल-ए-उक़्बा की रहज़न हो गईं
औज लखनवी
ग़ज़ल
शाह नसीर
ग़ज़ल
सहर ख़ुर्शीद लावे गर तुम्हारे सामने गुर्दा
समझ कर 'मुसहफ़ी' तुम उस को अपना नाश्ता चक्खो
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
दस्त-ए-फ़लक में गर्दिश-ए-तक़दीर तो नहीं
दस्त-ए-फ़लक में गर्दिश-ए-अय्याम ही तो है