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ग़ज़ल
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
वही शहर है वही रास्ते वही घर है और वही लॉन भी
मगर इस दरीचे से पूछना वो दरख़्त अनार का क्या हुआ
बशीर बद्र
ग़ज़ल
पूछे है क्या हलावत-ए-तलख़ाबा-ए-सरिश्क
शर्बत है बाग़-ए-ख़ुल्द-ए-बरीं के अनार का
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
और ही रंग आज है आरिज़-ए-गुल-अज़ार का
ख़ून-ए-दिल अपना था मगर गो न रुख़-ए-तराज़ में
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
कल नज़र आया चमन में इक अजब रश्क-ए-चमन
गुल-रुख़ ओ गुल-गूं क़बा ओ गुल-अज़ार ओ गुल-बदन