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ग़ज़ल
मतलब न कुफ़्र ओ दीं से न दैर ओ हरम से काम
करता है दिल तवाफ़-ए-इज़ार ओ तवाफ़-ए-ज़ु़ल्फ़
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
इज़ार-ए-आतिशीं ख़त्त-ए-सियह इक दिन निकालेगा
रुलाएगा ये शो'ला मेरी आँखों का धुआँ हो कर
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
ग़ज़ल
शब-ए-विसाल मयस्सर है क्यूँ न ऐ 'शादाँ'
अयाग़ बादा-ए-गुल-रंग गुल-इज़ार से लूँ
चंदू लाल बहादुर शादान
ग़ज़ल
समाता नईं इज़ार अपने में अबतर देख रंग उस का
करे किम-ख़्वाब सो जाने की यूँ पाते हैं जासूसी
नाजी शाकिर
ग़ज़ल
पहुँचें न तुझ को गुल-इज़ार यक दो सह चार पंज ओ शश
रुख़ तिरा एक और बहार यक दो सह चार पंज ओ शश