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ग़ज़ल
डरे क्यूँ मेरा क़ातिल क्या रहेगा उस की गर्दन पर
वो ख़ूँ जो चश्म-ए-तर से उम्र भर यूँ दम-ब-दम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
कोई मेरे दिल से पूछे तिरे तीर-ए-नीम-कश को
ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
मुझे इश्तिहार सी लगती हैं ये मोहब्बतों की कहानियाँ
जो कहा नहीं वो सुना करो जो सुना नहीं वो कहा करो
बशीर बद्र
ग़ज़ल
कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा
कुछ ने कहा ये चाँद है कुछ ने कहा चेहरा तिरा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
मुझे छोड़ दे मिरे हाल पर तिरा क्या भरोसा है चारा-गर
ये तिरी नवाज़िश-ए-मुख़्तसर मिरा दर्द और बढ़ा न दे
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
वाँ वो ग़ुरूर-ए-इज्ज़-ओ-नाज़ याँ ये हिजाब-ए-पास-ए-वज़अ
राह में हम मिलें कहाँ बज़्म में वो बुलाए क्यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
नई उम्रों की ख़ुद-मुख़्तारियों को कौन समझाए
कहाँ से बच के चलना है कहाँ जाना ज़रूरी है
वसीम बरेलवी
ग़ज़ल
तरब-आशना-ए-ख़रोश हो तू नवा है महरम-ए-गोश हो
वो सरोद क्या कि छुपा हुआ हो सुकूत-ए-पर्दा-ए-साज़ में