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ग़ज़ल
हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
फ़ना निज़ामी कानपुरी
ग़ज़ल
अज्ञात
ग़ज़ल
मिलेगी शैख़ को जन्नत, हमें दोज़ख़ अता होगा
बस इतनी बात है जिस के लिए महशर बपा होगा