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ग़ज़ल
चेहरे पे ख़ुशी छा जाती है आँखों में सुरूर आ जाता है
जब तुम मुझे अपना कहते हो अपने पे ग़ुरूर आ जाता है
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
ख़ुद-ब-ख़ुद नींद सी आँखों में घुली जाती है
महकी महकी है शब-ए-ग़म तिरे बालों की तरह
जाँ निसार अख़्तर
ग़ज़ल
वो निगाहें क्यूँ हुई जाती हैं या-रब दिल के पार
जो मिरी कोताही-ए-क़िस्मत से मिज़्गाँ हो गईं