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ग़ज़ल
ख़ुश-नुमा या बद-नुमा हो दहर की हर चीज़ में
'जोश' की तख़्ईल कहती है कि नुदरत देखिए
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
बेकल उत्साही
ग़ज़ल
ज़िंदगी कब से है काँटों की तिजारत से फ़िगार
फिर भी तख़्ईल में फूलों की दुकाँ है अब तक
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
फ़ज़ा में काँपती हैं धुँदली धुँदली नुक़रई शक्लें
हर इक तख़ईल-ए-पाकीज़ा मुजस्सम होती जाती है
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
गुर्ग-ए-एहसास से बचने की तो कोई नहीं राह
सग-ए-तख़ईल पे बंद आँख का दरवाज़ा करें
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
ग़ज़ल
आशियानों में छुपे बैठे हैं सब शाहीन-ओ-ज़ाग़
तुम भी 'शाइर' ताइर-ए-तख़्ईल के पर बाँध लो
हिमायत अली शाएर
ग़ज़ल
कुछ न पूछो तुम मिरी तख़्ईल की 'पर्वाज़' को
भीड़ में भी भीड़ से दामन बचा कर ले गया