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ग़ज़ल
है ख़ुश्क लहू मेरा और नफ़्स कशाकश में
वाँ क़त्ल को क़ातिल है याँ ख़त्ना को नाई है
इनायत अली ख़ान इनायत
ग़ज़ल
इस शहर में किस से मिलें हम से तो छूटीं महफ़िलें
हर शख़्स तेरा नाम ले हर शख़्स दीवाना तिरा