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ग़ज़ल
मैं क्या कहूँ कि हाल है क्या हिज्र-ए-यार में
दिल इख़्तियार में न जिगर इख़्तियार में
नश्तर छपरावी
ग़ज़ल
ब-जुज़ अंदोह-ओ-ग़म क्या और हिज्र-ए-यार में देखा
यही पाया यही हर कूचा-ओ-बाज़ार में देखा
हामिद हुसैन हामिद
ग़ज़ल
किसी दिन मुझ को ले डूबेगा हिज्र-ए-यार का सदमा
चराग़-ए-हस्ती-ए-मौहूम होगा गुल समुंदर में
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
फ़र्त-ए-बे-ख़्वाबी से हैं शब-हा-ए-हिज्र-ए-यार में
जूँ ज़बान-ए-शम्अ' दाग़-ए-गर्मी-ए-अफ़्साना हम
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
यार मुझ को देख ज़ा रोना तो उन सा हिज्र में
मुश्फ़िक़ाना कुछ नसीहत जबकि फ़रमाने लगे