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ग़ज़ल
उश्शाक़-ओ-बुल-हवस में नहीं करते वो तमीज़
वाँ इम्तियाज़-ए-नेक-ओ-बद असला नहीं रहा
अब्दुल ग़फ़ूर नस्साख़
ग़ज़ल
हम भी सौ चाह से देखेंगे तुम्हारी जानिब
तुम से भी ज़ब्त-ए-तबस्सुम न फिर असला होगा
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
दिल-दही के भी नहीं तर्ज़ से वाक़िफ़ असला
ये हसीनान-ए-जहाँ नाम को दिलदार हैं सब
असद अली ख़ान क़लक़
ग़ज़ल
सोज़-ए-दिल से लब ये हर दम नाला बेताबाना था
हिज्र-ए-साक़ी में किसी पहलू क़रार असला न था
हबीब मूसवी
ग़ज़ल
यूँ जो ढूँडो तो यहाँ शहर में 'अन्क़ा निकले
चाहने वाला जो चाहो तो ना-असला निकले
रजब अली बेग सुरूर
ग़ज़ल
हाँ हाँ तिरी सूरत हसीं लेकिन तू ऐसा भी नहीं
इक शख़्स के अशआ'र से शोहरा हुआ क्या क्या तिरा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
क़ैद-ए-हयात ओ बंद-ए-ग़म अस्ल में दोनों एक हैं
मौत से पहले आदमी ग़म से नजात पाए क्यूँ