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ग़ज़ल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
हँस के बुलवाइए मिट जाएगा सब दिल का गिला
क्या तसव्वुर है तुम्हारा कि मिटा भी न सकूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
जौन एलिया
ग़ज़ल
ज़रा देख चाँद की पत्तियों ने बिखर बिखर के तमाम शब
तिरा नाम लिक्खा है रेत पर कोई लहर आ के मिटा न दे
बशीर बद्र
ग़ज़ल
तिरा नाम तक भुला दूँ, तिरी याद तक मिटा दूँ
मुझे इस तरह की जुरअत कभी थी न है न होगी