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ग़ज़ल
अल्फ़-लैला तिरी अब तक यूँही जारी सारी
हम सुनाते हैं तिरे सब को फ़साने क्या क्या
मोहम्मद हनीफ़ कातिब
ग़ज़ल
सूरज में लगे धब्बा फ़ितरत के करिश्मे हैं
बुत हम को कहें काफ़िर अल्लाह की मर्ज़ी है