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ग़ज़ल
बोसा देते नहीं और दिल पे है हर लहज़ा निगाह
जी में कहते हैं कि मुफ़्त आए तो माल अच्छा है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
इक लहज़ा बहे आँसू इक लहज़ा हँसी आई
सीखे हैं नए दिल ने अंदाज़-ए-शकेबाई
सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम
ग़ज़ल
रुका रहता है चारों सम्त अश्क ओ आह का मौसम
रवाँ हर लहज़ा कारोबार-ए-अब्र-ओ-बाद रक्खा है
ज़फ़र इक़बाल
ग़ज़ल
मिरी शाम-ए-अलम सुब्ह-ए-मसर्रत होती जाती है
कि हर लहज़ा तिरे मिलने की सूरत होती जाती है
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
गिर्या-ए-नीम-शबी की ने'मत जब से बहाल हुई
हर लहज़ा उम्मीद-ए-हुज़ूरी बढ़ती जाती है
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
हर आन तसल्ली है हर लहज़ा तशफ़्फ़ी है
हर वक़्त है दिल-जूई हर दम हैं मुदारातें
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
ग़ज़ल
दीद उस की है करो जिस ने बनाया सब कुछ
न कि हर लहज़ा फ़िदा-ए-गुल-ओ-शमशाद रहो