aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "aapse"
सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैंसो उस के शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं
दिल कि आते हैं जिस को ध्यान बहुतख़ुद भी आता है अपने ध्यान में क्या
महबूब का घर हो कि बुज़ुर्गों की ज़मीनेंजो छोड़ दिया फिर उसे मुड़ कर नहीं देखा
किस लिए जीते हैं हम किस के लिए जीते हैंबारहा ऐसे सवालात पे रोना आया
जब हुआ ज़िक्र ज़माने में मोहब्बत का 'शकील'मुझ को अपने दिल-ए-नाकाम पे रोना आया
अब के गर तू मिले तो हम तुझ सेऐसे लिपटें तिरी क़बा हो जाएँ
तेरे विसाल के लिए अपने कमाल के लिएहालत-ए-दिल कि थी ख़राब और ख़राब की गई
सब से नज़र बचा के वो मुझ को कुछ ऐसे देखताएक दफ़'अ तो रुक गई गर्दिश-ए-माह-ओ-साल भी
यूँ नहीं है कि फ़क़त मैं ही उसे चाहता हूँजो भी उस पेड़ की छाँव में गया बैठ गया
ये क्या अज़ाब है सब अपने आप में गुम हैंज़बाँ मिली है मगर हम-ज़बाँ नहीं मिलता
उसे कौन देख सकता कि यगाना है वो यकताजो दुई की बू भी होती तो कहीं दो-चार होता
अपने हर हर लफ़्ज़ का ख़ुद आइना हो जाऊँगाउस को छोटा कह के मैं कैसे बड़ा हो जाऊँगा
है उसे दूर का सफ़र दर-पेशहम सँभाले नहीं सँभलते हैं
यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करोवो ग़ज़ल की सच्ची किताब है उसे चुपके चुपके पढ़ा करो
शिकवा-ए-ज़ुल्मत-ए-शब से तो कहीं बेहतर थाअपने हिस्से की कोई शम्अ' जलाते जाते
किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैंतुम अपने आप को ख़ुद ही बदल सको तो चलो
अपने शहर के सब लोगों सेमेरी ख़ातिर क्यूँ उलझे हो
रह-ए-वफ़ा में हरीफ़-ए-ख़िराम कोई तो होसो अपने आप से आगे निकल के देखते हैं
किसे है ख़्वाहिश-ए-मरहम-गरी मगर फिर भीमैं अपने ज़ख़्म दिखा लूँ अगर इजाज़त हो
दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोईजैसे एहसाँ उतारता है कोई
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