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ग़ज़ल
तू ख़ुदा है न मिरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा
दोनों इंसाँ हैं तो क्यूँ इतने हिजाबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
कभी शोर-ए-क़यामत गोश-ए-इंसाँ तक भी पहुँचेगा
कोई सय्यारा बदलेगा मदार आहिस्ता आहिस्ता
असलम अंसारी
ग़ज़ल
बेदर्द सुननी हो तो चल कहता है क्या अच्छी ग़ज़ल
आशिक़ तिरा रुस्वा तिरा शाइर तिरा 'इंशा' तिरा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
जिसे कहती है दुनिया कामयाबी वाए नादानी
उसे किन क़ीमतों पर कामयाब इंसान लेते हैं