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ग़ज़ल
हाँ हाँ तिरी सूरत हसीं लेकिन तू ऐसा भी नहीं
इक शख़्स के अशआ'र से शोहरा हुआ क्या क्या तिरा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
मिरे अशआ'र ऐ 'इक़बाल' क्यूँ प्यारे न हों मुझ को
मिरे टूटे हुए दिल के ये दर्द-अंगेज़ नाले हैं
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
मिरे अशआ'र पर ख़ामोश है जिज़-बिज़ नहीं होता
ये वाइज़ वाइ'ज़ों में कुछ हक़ीक़त-आश्ना होगा
हरी चंद अख़्तर
ग़ज़ल
सुन के अश’आर मिरे सब यही कहते हैं 'रियाज़'
इस की क़िस्मत है बुरी और तबी'अत अच्छी